Wednesday, January 13, 2010
Sunday, January 10, 2010
Tuesday, October 13, 2009
देषभक्त षहीदों के अपमान के खिलाफ छिड़ी जंग
इन्डिया गेट की क्या सच्चाई, गुलामी की पहचान है भाई !गुलामी के प्रतीक इन्डिया गेट पर सलामी देना बन्द करो, देषभक्त षहीदांे का राश्ट्रीय स्मारक बनाओ, इंन्कलाब जिन्दाबाद, साम्राज्यबाद मुर्दाबाद, के आक्रोष भरे नारांे से जन्तर-मन्तर का पूरा इलाका गूंज रहा था। लोग जोर-.जोर से नारे लगा रहे थे। वक्त था 12 बजे का, दिन रविवार, दिनांक 9 अगस्त 2009। अंग्रेजी साम्राज्य की निषानी इन्डिया गेट पर 62 वर्शांे से चली आ रही सलामी की परम्परा को समाप्त करने तथा इन्डिया गेट के सामने उससे भी ऊंचा तथा विषाल (1757 से लेकर 1947 के बीच स्वाधीनता आन्दोलन में षहीद हुए) अपने देषभक्त षहीदों का राश्ट्रीय स्मारक बनाने की मांग को लेकर दिल्ली के जन्तर मन्तर पर तीसरा स्वाधीनता आन्दोलन के राश्ट्रीय संगठक गोपाल राय द्वारा आमरण अनषन षुरू हुआ। अनषन षुरू होने से पूर्व षहीद भगत सिंह के भांजे प्रो जगमोहन सिंह, 1857 के नायक तात्या टोपे के वंषज डां राजेष टोपे, व सुभाश टोपे, कूका आंन्दोलन के प्रतिनिधि सुबा सर्वजीत सिंह नामधारी, जेएनयू के प्रो. यू पी अरोड़ा, जे. पी. आंन्दोलन से जुड़े रहे डाॅ. राकेष रफीक की अगुवाई में षहीदों की याद में षमा-ए-आजादी जलायी गई। 5 दिन गुजर गये पर सरकार की तरफ से कोई प्रतिक्रिया न देख आंदोलन के कार्यकर्ताओं द्वारा 14 अगस्त को 12 बजे जंतर-मंतर से प्रधानमंत्री कार्यालय तक मार्च निकाला गया जिसे रास्ते में पुलिस ने रोक दिया, जहां पर गगन भेदी नारे लगाये गये व इन्डिया गेट की प्रतियां जलाई गयी और अन्त में प्रधानमंत्री को आन्दोलन का मांगपत्र दिया गया, यह कहते हुए की अगर प्रधानमंत्री स्वतंत्रता दिवस पर इन्डिया गेट पर सलामी देने जाते है तो 16 अगस्त को अनषनकारी एवं आन्दोलन के कार्यकर्ता काला दिवस मनाकर इसका विरोध करेगें। इसके बावजूद मनमोहन सिंह ने न सिर्फ गर्व के साथ इन्डिया गेट पर सलामी दी बल्कि ‘लाल किला’ पर बच्चों से ‘इन्डिया गेट’ का प्रतिविम्ब भी बनवा दिया। आप सोच सकते है कि हमारी सरकार कितनी गिरी हुई है। आन्दोलन के सभी कार्यकर्ताओं ने 16 अगस्त को हाथ और सर पर काली पट्टी बाध कर काला दिवस मनाया और सरकार का तीव्र विरोध करते हुए सभा की गयी। आंदोलन के नेता आर.एस. विकल के संचालन में जे. पी. आंन्दोलन से जुड़े रहे डाॅ. राकेष रफीक मध्य प्रदेष से किसान नेता ईष्वरचंद त्रिपाठी, हरियाणा से प्रदीप कुमार आर्य, एडवोकेट विश्णु भगवान अग्रवाल, रघुवीर गर्ग, उ.प्र. से देवेन्द्र गांधी, उत्तराखण्ड से दयाकृश्ण कांडपाल, योधराज त्यागी, राजस्थान से रामनिवास भाम्भू, बस्तीराम सांखला, महाराश्ट्र से साथी जोजफ, सुंदर, दिल्ली से राम कुमार कृशक, राम नारायण स्वामी ने संबोधित करते हुए कहा कि जिन षहीदों के बलिदान से देष आजाद हुआ आज सरकार उनके लिए स्मारक बनाने के लिए टाल-मटोल कर रही है। इस सभा के पष्चात कविता पाठ का आयोजन किया गया।आंदोलन के समर्थन में अनषनकारी गोपाल राय से मिलने पूर्व सांसद एवं समाजवादी नेता सुरेन्द्र मोहन, स्वामी अग्निवेष, भाकपा के राश्ट्रीय सचिव अतुल अंजान, मजदूर नेता के. के. वैद्य, सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट ए.एन. सिंह, आदि प्रमुख लोगों सहित देषभर से सैकड़ों देषभक्त राजनीतिक व सामाजिक संगठनों के कार्यकर्ता जंतर-मंतर पहुंचेे। परन्तु अनषन का आठवाँ दिन बीत जाने के बाद भी सरकार का कोई आदमी पूछने तक नहीं आया। 18 अगस्त को 10 वाँ दिन हो चुका था । उस दिन सुबह से ही पुलिस की काफी भीड़ व सक्रियता बढ गयी थी। अन्ततः दोपहर 2.30 बजे 40-50 की संख्या में पुलिस वाले आये और अनषनकारी गोपाल राय को जबरदस्ती उठा ले गये तथा आन्दोलन को दबाने में कोई कसर न छोड़ा। इधर जन्तर- मन्तर पर आन्दोलन के कार्यकर्ताआंे ने यह फैसला किया कि अनषनकारी गोपाल राय एवं आन्दोलन के समर्थन में मध्य प्रदेष भारतीय किसान यूनियन के सचिव राज बहादुर जन्तर मंतर पर अनषन करेंगे तथा गोपाल राय राम मनोहर लोहिया अस्पताल में अपना अनषन जारी रखेंगंे। सरकार एवं पुलिस द्वारा की गयी इस कार्यवाही का विरोध करने के लिए 23 अगस्त को सामुहिक रोजा एवं उपवास रखा जाएगा। इस बीच 19 अगस्त को सुबह 9 बजे आठ दस पुलिस वाले आए और अनषन को बीच में ही खत्म करने के लिए अपना जोर आजमाइष करने लगे। कुछ ने टेन्ट को भी नुकसान पहंुचाया लेकिन आन्दोलन के साथियों ने उनका डट कर मुकाबला किया। तब जाकर वे षान्त हुए और हमारा आन्दोलन पूर्ववत जारी रहा। अनषन के 11 दिन बाद भी सरकार को होष नहीं आया न ही सरकार ने इस पर कोई बयान देना ही उचित समझा, वह मौन ही रही। आप सोचंे की जिस देष के मजदूर किसान के बेटों ने 200 वर्शांे तक अंग्रेज हुकूमत से लड़ते हुए अपनी जान की बाजी लगा दी, उस देष की सरकार उनको सम्मान तक देने में कतराती है तो यही कहा जाऐगा कि सरकार बिल्कुल ही संवेदनहीन है। धीरे-धीरे अनषन के 15 दिन गुजर चुके थे। पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार 23 अगस्त को तीसरा स्वाधीनता आन्दोलन के सभी कार्यकर्ता जंतर-मंतर पंहुचे और रोजा एवं उपवास षुरू हुआ। वही पर सभा भी हुई और फैसला लिया गया कि सरकार की संवेदनहीनता एवं हृदयविहीनता को देखते हुए अनषनकारी गोपाल राय को बुलाया जाय तथा उनसे सभी लोग अपील करंे कि इस बेजान एवं निर्जिव सरकार की चुप्पी को देखते हुए अपनी ऊर्जा को बचाए रखना जरूरी है ताकि इस सरकार से व्यापक जनगोलबंदी करके लम्बी लड़ाई लड़ी जा सके । फिर अनषनकारी गोपाल राय को अस्पताल से लाया गया और उनसे अपील की गयी कि हम सभी साथी आपकी इस कुर्बानी को सलाम करते हंै। आपकी यह कुर्बानी बेकार नहीं जाने दिया जाएगा तथा सरकार को झुकना ही पडे़गा, फिर राश्ट्रीय प्रमुख प्रो. जगमोहन सिंह ने फल का जूस पिला कर गोपाल राय व राज बहादुर का अनषन तुड़वाया। आन्दोलन के कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए गोपाल राय ने कहा कि सरकार षहीदांे का अपमान करना छोड़ दे। हम सभी आन्दोलनकारी यह संकल्प लेते है कि अपनी मांग पर सरकार के मौन का जवाब मौन व्रत से देगें। मैं आज से 29 तक मौन व्रत करूंगा, तथा 30 अगस्त को यहीं पर जनसंसद करके आगे का फैसला लिया जायेगा।इस तरह से तीसरा स्वाधीनता आन्दोलन का मौन व्रत चलने लगा। इस बीच विभिन्न संगठनो के नेताओं और मीडिया से जुड़े लोग आये और इस मांग का समर्थन करने वालों का सिलसिला जारी रहा। 29 की रात से ही देष भर से तीसरा स्वाधीनता आन्दोलन के कार्यकर्ताओं का आना षुरू हो गया। देष के कोने-कोने से किसान, मजदूर, छात्र नौजवान, बुद्विजीवि व षहीदांे के परिजन आने लगे, यह सिलसिला सुबह तक जारी रहा। इस बीच सुबह से ही बरसात ने आन्दोलन में व्यवधान डालने का मन बनाया और सुबह 4 बजे से ही बारिष होने लगी , लेकिन कार्यकर्ताओं ने जोष के साथ उसका सामना किया अन्ततः बरसात को हार माननी पड़ी और रूकना पड़ा तब जाकर 11.30 बजे से राश्ट्रीय जन संसद का कार्यक्रम षुरू हो गया। जन संसद में पिछले 9 अगस्त से तीसरा स्वाधीनता आन्दोलन के द्वारा जन्तर-मन्तर पर चलाये जा रहे आन्दोलन की सरकार द्वारा उपेक्षा करने पर चैतरफा आक्रोष व्यक्त किया गया और यह निर्णय लिया गया कि सरकार अगर किसान-मजदूर के षहीद हुए बेटें-बेटियों का राश्ट्रीय स्मारक नहीं बनाती है तो 2 अक्टूबर को देष भर के किसान मजदूर बुद्धिजीवी प्रधानमंत्री का घेराव करेगंे। इस निर्णय कि जानकारी राश्ट्रपति को ज्ञापन देकर दिया गया। वक्ताओं ने कहा कि पिछले तीन सालांे से आन्दोलन द्वारा राश्ट्रपति एवं प्रधानमंत्री को बार बार ज्ञापन दिया गया लेकिन सरकार पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। तब बाध्य होकर तीसरा स्वधीनता आन्दोलन के राश्ट्रीय संगठक गोपाल राय द्वारा 9 अगस्त 09 को अनषन पर बैठना पड़ा। जन संसद में कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए आन्दोलन के राश्ट्रीय प्रमुख एवं षहीद भगत सिंह के भांजे प्रो0 जगमोहन सिंह ने कहा कि हमने आज तक देष की राजधानी दिल्ली में अपने समग्र स्वाधीनता आन्दोलन के दोरान प्राणोंत्सर्ग करने वाले लाखों षहीदों की याद में एक राश्ट्रीय स्मारक तक नहीं बनाया जो उस नैतिक व त्यागपूर्ण व्यवहार की याद दिलाता रहता की हमें क्या करना है। यही कारण है कि आज देष में चारो तरफ अफरा-तफरी का माहौल कायम हो गया है। आंदोलन के राश्ट्रीय संगठक डाॅ. राकेष रफीक ने कहा कि फांसी के कुछ ही दिन पहले षहीद भगत सिंह ने कहा था कि अब अंग्रेज कुछ ही दिनों के मेहमान हंै, वे चले जाएगंे, भारतीय नेताओं से कोई न कोई समझौता हो जाएगा लेकिन इससे भारत की जनता को कोई लाभ नहीं होगा, बहुत दिनांे तक अफरा-तफरी का माहौल रहेगा उसके बाद लोगांे को मेरी याद आएगी। आज अगर उनकी कही बातों को मनन किया जाय तो हम यह कह सकते है कि उनकी सोच सही थी। आज भारत एक निर्णायक मोड़ पर खड़ा है पूरे देष में अमेरिकी बैंड पर विष्व व्यापार संगठन, विषेश आर्थिक क्षेत्र सेज व परमाणु करार द्वारा इन्डिया का विकास गान सप्तम स्वर में गाया जा रहा है। अब जार्ज पंचम की जगह जन गण मन के अधिनायक व भारत के भाग्य विधाता की जिम्मेदारी अमरिकी आकाओं ने ले ली है। साम्राज्यवादी आका गद्दार इंडियनो की मदद से भारत के प्राकृतिक संपदा को अबाध गति से लूट रहे हंै। आगे सभा को संबोधित करते हुए आन्दोलन के राश्ट्रीय संगठक गोपाल राय ने कहा कि जब हमारा देष गुलाम था तब यहां की संम्पति अंग्रेजो ंके पास थी या कुछ लोगांे के पास थी। जब देष आजाद हुआ तो उसे राश्ट्रीय संम्पति घोशित किया गया, लेकिन 62 साल आजादी के बाद ही ऐसा क्या हो गया कि हमारी सरकार ने उसे निजी हाथो में देने लगी, जबकि अभी हर हाथ को काम, किसानों को लाभकारी दाम, सबको रोटी की व्यवस्था करना अभी बाकी है। इसका एक ही कारण है कि हमें जो आजादी मिली वह अधूरी आजादी थी, समझौते के द्वारा मिली आजादी थी कुछ मुठ्ठी ्र्र्र्र्र्र्र्रभर लोगांे की आजादी थी वही आज सत्ता में बैठ कर आज गुलामी जैसी स्थिति पैदा कर रहे हंै। इसलिए अब हम सबकी जिम्मेदारी बन जाती है कि हम सब लोग इस बात को सोचे ओर समझे। लिजिए संकल्प की फिर देष ना गुलाम हो, तीसरा स्वाधीनता आंदोलन का एलान हो।जनसंसद को पूर्व राज्य सभा सदस्य आसमहम्मद, किसान नेता ईष्वर चंद त्रिपाठी, एडवोकेट विश्णु भगवान अग्रवाल, गोरखपुर विष्वविद्यालय के नेता नित्यानंद त्रिपाठी, युवा नेता पंकज त्यागी, जमात-ए-इस्लामी के इनामुरर्हमान, उ.प्र. से लेखक व विचारक मुर्षरफ अली, कुमार प्रदीप, सुनील सौरभ, ओमवीर यादव, म.प्र. से श्रीकांत द्विवेदी, राधाविष्वकर्मा, छोटेलाल, राजस्थान से बस्तीराम सांखला, आदि ने अपने विचार रखे। संसद की अध्यक्षता अमर षहीद तात्या टोपे के वंषज सुभाश टोपे तथा संचालन आर.एस. विकल ने किया।
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