Thursday, October 23, 2008

राष्ट्रीय विमर्श में हिस्सा लें

साथियों,

तीसरा स्वाधीनता आंदोलन की तरफ से 5 नवंबर 2008 को गांधी शांति प्रतिष्ठान, दिल्ली (दीन दयाल उपाध्याय मार्ग पर स्थित, निकट आईटीओ) में राष्ट्रीय विमर्श आयोजित किया जा रहा है।
विषय है- क्या गणतंत्र दिवस पर साम्राज्यवाद के रक्षकों की याद में बने इंडिया गेट पर सलामी उचित है?
समय है- दोपहर 12 बजे।
इस विमर्श में मुख्य वक्ता हैं- प्रो. जगमोहन सिंह (शहीद भगत सिंह के भांजे), आलोक तोमर (मशहूर पत्रकार), प्रो. यूपी अरोरा (जेएनयू), डा. राकेश रफीक (सामाजिक चिंतक), अशफाक उल्ला खां (शहीद अशफाक उल्ला खां के पौत्र), पंडित सुरेश नीरव (मशहूर कवि और पत्रकार), गोपाल राय (राष्ट्रीय संगठक, तीसरा स्वाधीनता आंदोलन), संजय तिवारी (सामाजिक चिंतक और विस्फोट.काम के मुख्य संपादक) और यशवंत सिंह (संपादक, भड़ास4मीडिया.काम)।

इस मौके पर आप सभी भड़ासियों को सस्नेह आमंत्रित किया जा रहा है। आप पधारें और इस मौके पर होने वाले विमर्श में भागीदारी करें।

साथ ही, आपस में मिलने जुलने के एक मौके का लाभ उठाएं। हमें इंतजार रहेगा आपके जवाब का। अगर आप आने को इच्छुक हों तो अपना नाम मेरे मोबाइल नंबर पर फोन कर या एसएमएस कर जरूर बता दें। मेरा मोबाइल नंबर है- 09871215875

जय हिंद, जय जनराष्ट्र
गोपाल राय
राष्ट्रीय संगठक
तीसरा स्वाधीनता आंदोलन

1 comment:

Tarun Goel said...

"उद्देश्य है- हर हाथ को काम, हर व्यक्ति को सम्मान और विकसित भारत का निर्माण।" ये उद्देश्य है "भारत के तीसरे स्वाधीनता संग्राम का", जब मैं आपके ब्लॉग के प्रथम पृष्ठ पे था तो मुझे काफ़ी खुशी हुई की हाँ आज भी लोग जाग रहे हैं। पर हर हाथ को काम, हर व्यक्ति को सम्मान और विकसित भारत का निर्माण ये सब इंडिया गेट पे झंडा फेह्राने से कैसे जुड़ी हुई हैं ये समझ नहीं आया।

हम बात करते हैं सिमी की, बजरंग दल की और भी जाने क्या क्या, अरे झंडे की इज्जत आदमी तब करेगा जब उसे खाने को रोटी मिलेगी , नहीं तो क्या मतलब है झंडे का और क्या मतलब है देश का। ये सब, जहाँ मैं सोच सकता हूँ, बेकार खाली बैठे हुए लोगों के काम हैं, न की पढ़े, लिखे जागे हुए लोगों के। अरे झंडा फेह्राने वालों सिपाहियों से पूछिए क्या साम्राज्यवाद और क्या socialism।

मैं सिर्फ़ अपने विचार व्यक्त करना चाहता था सो मैंने कर दिए, मेरी २२ साल की उमर की समझ सिर्फ़ ये बोलती है की ये सब चीज़ें हमें हमारे लक्ष्य से सिर्फ़ भटका सकी हैं और भटका रही हैं।